Sunday 19 January 2020

जेएनयू हिंसा ........जिम्मेदारी केंद्र सरकार की क्यों?

जेएनयू में हुई हिंसा के लिए केंद्रीय गृहमंत्री , प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार को दोष देना कितना उचित है इसका निर्णय आप मेरा लेख पढ़ने के बाद करेंगे तो मेहरबानी होगी। सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि जेएनयू में हिंसा क्यों हुई ? हिंसा के पीछे क्या संभावित कारण हो सकते हैं ? क्या इस हिंसा का सम्बन्ध जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से है ?


संशोधित नागरिक अधिनियम के खिलाफ दिल्ली में सबसे पहले प्रदर्शन जामिया में किए गए और इसने कुछ भी असामान्य नहीं क्योंकि हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है और यहां विरोध करना संविधान प्रदत्त अधिकार है लेकिन अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का निर्वाहन भी बहुत जरूरी है। इसके पहले भी जामिया आतंकवादियों के मुठभेड़ के मामले में काफी चर्चा में रहा था और उसमें भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता वादी और लोकतंत्र की रक्षा करने के नाम पर तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों ने बहुत ही घड़ियाली आंसू बहाए थे और मुठभेड़ में एक शहीद पुलिस अधिकारी के विरुद्ध भी आरोप गढ़े गए थे। एक राष्ट्रीय पार्टी की तत्कालीन अध्यक्ष भी बिलख बिलख कर रोयी थी। जामिया में CAA के विरुद्ध हुए प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया था । उपलब्ध वीडियो फुटेज और मौके पर मौजूद पत्रकारों के अनुसार प्रदर्शनकारी अपने साथ पत्थर के टुकड़े लाए हुए थे और भी पत्थर छोटी छोटी गाड़ियों में , टेंपो आदि में भरकर लाये जा रहे थे । कई ऐसे प्रदर्शनकारी थे जिनके बैग में पत्थर भरे हुए थे और उन्होंने पत्थरों का इस्तेमाल पुलिस पर किया। कश्मीर के बाहर पुलिस पर यह अपनी तरह की पत्थरबाजी की पहली घटना है । इसके पहले पत्थरबाजी सेना और पुलिस पर केवल कश्मीर घाटी में होती थी। इस प्रदर्शन में प्रदर्शनकारी पत्थरबाजी करते हुए जामिया के कैंपस के अंदर चले गए और लगातार वहां से पत्थरबाजी होती रही। कहा जाता है कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने जामिया के उच्च प्रबंधन से संपर्क किया लेकिन कोई जवाब न मिलने पर पुलिस को जामिया के अंदर प्रवेश करना पड़ा और ऐसा करना इस पत्थरबाजी के रूप में हो रही आतंकवाद की इस घटना को रोकने के लिए जरूरी था। जामिया कैंपस के अंदर बड़ी मात्रा में फर्जी आईडी कार्ड बरामद किए गए जिससे पता चलता है कि प्रदर्शन और पत्थरबाजी की घटना कितनी पूर्व नियोजित थी और जामिया के अंदर नियमित स्टूडेंट्स के अलावा भी उपद्रवी लोग रहते थे या उस समय मौजूद थे। इस घटना की पीछे की साजिश का पर्दाफाश होते ही साजिशकर्ता और उनके तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रवादी लोग सक्रिय हो गए और इस पूरी घटना की भर्त्सना इस कदर की गई कि कई दिन तक टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में सुर्खियां बटोरते रहे। बहुत दुर्भाग्य पूर्ण बात है कि कुछ बड़े नेताओं ने जामिया की तुलना जलियांवाला कांड से की और विपक्ष के लगभग हर छोटे-बड़े नेता ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस के खिलाफ बिगुल बजा दिया । जामिया हिंसा का प्रचार करने के लिए समाचार पत्रों, टीवी और सोशल मीडिया का भरपूर दुरुपयोग किया गया और पूरे देश में एक लहर बनाने की कोशिश की गई कि केंद्र की भाजपा सरकार छात्र विरोधी है, मुस्लिम विरोधी है, और एक निश्चित हिंदुत्व के एजेंडे पर काम कर रही है। विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों और तथाकथित प्रगतिशील विचारों वाले लोगों और लुटियन दिल्ली की सत्ता में स्थापित कई विद्वान लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। अब यह परिपाटी बन गई है कि जब भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह का विरोध होता है , तथाकथित पेशेवर धर्मनिरपेक्ष संत और विद्वान लोग इतना आगे निकल जाते हैं कि उन्हें मोदी विरोध और देश विरोध में कोई अंतर समझ में नहीं आता।

जामिया के प्रदर्शन मैं जेएनयू स्टूडेंट भी शामिल हुए और उन्होंने पुलिस के खिलाफ दिल्ली पुलिस मुख्यालय घेर कर लगातार प्रदर्शन किया। जेएनयू के पेशेवर छात्रों और उनके राजनीतिक संरक्षकों ने आंदोलन को जेएनयू कैंपस तक ले आने के लिए जी तोड़ प्रयास किया और पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े गए । एक हिंदूवादी विचारधारा से संबंधित छात्रों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया। कोशिश की गई कि किसी भी तरीके से जेएनयू को पुनः आंदोलन का बड़ा केंद्र बनाया जाए। इसके लिए एक विशेष विचारधारा से संबंधित स्टूडेंट्स यूनियन ने दूसरे विचारधारा से संबंधित लोगों को चेहरे ढक कर और मास्क लगाकर आक्रमण किया। इससे कई लोगों को चोटें आई। पुलिस जेएनयू के गेट पर पहुंच गई लेकिन कहते हैं कि दूध का जला मट्ठा भी फूंक फूंक कर पीता है। जामिया कांड में पुलिस पर दोषारोपण किया गया था कि वे बिना इजाजत के कैंपस में कैसे घुसी ? जिसमें जावेद अख्तर से लेकर कई गणमान्य स्वयंभू लोग शामिल है। दिल्ली पुलिस जेएनयू के अंदर नहीं घुसी और और जेएनयू गेट पर ही योगेंद्र यादव जैसे छात्रों के परम हितैषी चिल्लाते देखे गए कि पुलिस अंदर क्यों नहीं जा रही है। और बेचारी पुलिस ! अंदर जाए तो मुश्किल और न जाए तो मुश्किल। एक बड़े नेता को इतना दुख पहुंचा की उन्होंने इस मारपीट की घटना में 26/11 याद आ गया ।

अब जेएनयू के अंदर हुई हिंसा की एक उच्चस्तरीय जांच की जा रही है और कई वीडियो और सीसीटीवी फुटेज सामने आ गए हैं जिसे पता चलता है कि इस काण्ड में कई ऐसे छात्र और छात्र संगठन शामिल है जो पुलिस और सरकार पर हिंसा का आरोप लगा रहे थे । पुलिस ने ऐसे कई छात्रों को नामजद किया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जेएनयू स्टूडेंट का एक वर्ग बहुमुखी प्रतिभा का इतना धनी है की कई घटनाओं को नाटकीय अंदाज में अंजाम दिया जाता है जैसे कि कोई नुक्कड़ नाटक। 5 जनवरी को जेएनयू के अंदर हुई हिंसा की चपेट में बहुत से छात्र आए और कई को ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस में भर्ती कराया गया लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि उन छात्रों के वहां पहुंचने के पहले ही कई राजनेता उनकी मिजाज पुर्सी के लिए पहुंच गए थे जैसे कि उन्हें मालूम था कि अब क्या होने वाला है। कुछ चोटिल / घायल छात्रों का फोटो विश्लेषण किया गया और पाया गया कि उनमें से कई की चोटों के स्थान बदल गए है ।जिस के बाएं हाथ में पट्टी बंधी थी , दूसरे दिन वह दाएं हाथ पर पहुंच गई । कई लोगों की गंभीर चोटों के घाव जिनमें 20 से 22 टांके लगे बताए गए थे, वह एक-दो दिन में ही ठीक हो गए और वे पट्टी बांध कर टीवी इंटरव्यू देते रहे और पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन भी करते रहे।

इन प्रदर्शनों में जो जेएनयू से लेकर इंडिया गेट तक और शाहीन बाग से लेकर जंतर-मंतर तक फैलते रहे, धारा 370 और कश्मीर की आजादी से संबंधित पोस्टर भी लहराए गए और नारे भी लगाए गए। इन प्रदर्शनों की एक सबसे खास बात अबकी बार यह रही कि इसमें हिंदुत्व को निशाना बनाया गया जो वास्तव में धर्म नहीं है और हिंदुत्व से आजादी के नारे भी लगाए गए । भाजपा मुर्दाबाद, मोदी ,अमित शाह मुर्दाबाद के नारों से तो शायद किसी को एतराज नहीं होगा लेकिन "हिंदुत्व की कब्र खुदेगी" के नारों से पूरा देश आक्रोशित है क्योंकि हिंदुत्व, धर्म नहीं एक जीवन विधा है और हिंदुस्तान की आत्मा है। इस तरह की वीडियो फुटेज कई टीवी चैनल पर दिखाए गए हैं। इससे ऐसा लगता है कि जो प्रदर्शन जेएनयू में हुए उसमें न तो छात्रों से संबंधित कोई मुद्दे थे और न ही संशोधित नागरिक कानून से संबंधित, बल्कि चिर परिचित मुद्दे जिसके केंद्र में कश्मीर और धारा 370, हिंदू , मोदी और अमित शाह थे।


इस बीच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए और वहां भी हिंदुत्व से आजादी और सावरकर मुर्दाबाद जैसे नारे भी लगाए गए । अलीगढ़ के पुलिस अधिकारी जिनके कई वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं उनकी तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से स्टूडेंट को समझाने की कोशिश की और बिना बहुत ज्यादा बल प्रयोग किए हुए आंदोलन पर काबू पाया। यूनिवर्सिटी का प्रबंध तंत्र भी प्रशंसा का पात्र है जिसने समय रहते ही पुलिस को कैंपस में आने की छूट देकर , सार्वजनिक संपत्ति और जान माल के नुकसान को बचाने का प्रयास किया। एक और यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए उसका नाम है जाधवपुर यूनिवर्सिटी लेकिन उस यूनिवर्सिटी की घटनाएं मीडिया की सुर्खियां नहीं बन सकी क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री स्वयं विरोध का झंडा लेकर धरना और प्रदर्शनों की अगुवाई कर रही हैं। CAA पर तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ को भी एक पक्ष बनाने की अपील की, जनमत संग्रह कराने की बातें की और भी जो कुछ उनकी वोट बैंक की राजनीति के लिए आवश्यक था, कहा और किया जिससे पूरे विश्व में हिंदुस्तान की किरकिरी हुई। उनकी इन हरकतों से न केवल केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकार की संपत्तियों का भी अत्यधिक नुकसान हुआ। ज़ाहिर सी बात है वे मीडिया में छाई रही और जाधवपुर यूनिवर्सिटी सुर्खियों मे नहीं आ सकी। लेकिन वहां भी राज्यपाल के साथ दुर्व्यवहार, दूसरी विचारधारा के छात्रों के साथ मारपीट जैसे सभी कार्य किए गए जो जेएनयू की पहचान होते है ।

इससे यह अंदाजा लगाना बहुत आसान है कि यह प्रदर्शन चिर परिचित प्रदर्शन है और इनके पीछे वही शक्तियां काम कर रही हैं जो हिंदू और मुसलमान को बांटना चाहते हैं और पूरे देश में अराजकता की स्थिति लाना चाहती हैं। ऐसा करने वाले कौन लोग हो सकते हैं ? उत्तर बहुत आसान है ऐसा करने वाले हमारे पड़ोसी देश हो सकते हैं और ऐसे देश हो सकते हैं जो भारत को फलता फूलता नहीं देख सकते जिन्हें भारत में हो रही प्रगति बर्दाश्त नहीं हो सकती। ऐसे देश और ऐसी संस्थाएं इस तरह के आंदोलनों को बढ़ावा दे रही हैं और उसमें अनाप-शनाप पैसा भी खर्च कर रही है। और कुछ राजनैतिक दल जिन की दुकानें बंद हो चली है और कई ऐसे बिचौलिए है जो छोटे-मोटे ठेकों से लेकर रक्षा सौदा तक दलाली करते थे वह भी बेरोजगार हो गए हैं एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल तो सत्ता की आकांक्षा में कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है , चाहे मोदी के विरुद्ध विदेशों में प्रदर्शन करना पड़े , चाहे पाकिस्तान का साथ देना पड़े या पूरे देश को आग के हवाले करना पड़े। और तो और चाहे देश का एक और विभाजन करना पड़े......सत्ता चाहिए।

क्या 2014 से पहले किसीको मालूम था कि ....

जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारे भी लगाए जाते हैं?
जेएनयू में 40 से 50 साल की उम्र तक छात्र पढ़ते हैं?
जेएनयू में शिक्षक भी हड़ताल और धरना प्रदर्शन में शामिल हो जाते है?
जेएनयू में हिंदू धर्म को खुलेआम गाली दी जाती है?
जेएनयू में खुलेआम हिंदुस्तान से आजादी की मांग की जाती है?
जेएनयू वामपंथी विचारधारा का गढ़ है जहां पढ़ाई लिखाई और राष्ट्रहित के कामों से बामपंथी विचारधारा सर्वोपरि है?

आज जेएनयू सहित कई ऐसी संस्थाएं इस देश में है जो देश के हितों के विरुद्ध काम कर रही हैं और इनमें अराजकता की फैक्ट्रियां चल रही है इन्हें चलाने वाले उसी विचारधारा के लोग हैं जो कभी विभाजन से पहले मुस्लिम लीग की विचारधारा थी । इन्हें देश से कुछ मतलब नहीं है , देश के लोगों से कुछ भी लेना देना नहीं है इन्हें सिर्फ आज की चिंता है यह लोग वर्तमान में जीने वाले लोग हैं ये अपने आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी नहीं सोचते हैं। देश बचेगा या नहीं बचेगा इनकी समझ से बाहर है और शायद इसीलिए ये कश्मीर कीआजादी , टुकड़े-टुकड़े गैंग की हिमायत , आतंकवादियों के मानवीय अधिकारों की वकालत, हिंदुत्व की कब्र खोदने के नारे लगाने का काम कर रहे हैं और संविधान बचाने की कसमें खा रहे हैं । पर वास्तविकता में सिर्फ और सिर्फ इनका स्वार्थ है। रही बात मोदी की ? तो कौन खुश है इस व्यक्ति से ? न विपक्ष के लोग, न अपनी पार्टी के लोग, न नौकरशाह , न पत्रकार और न ही न्यायपालिका । क्या यह व्यक्ति जो कर रहा है वह सिर्फ अपने लिए कर रहा है ? अपने स्वार्थ के लिए कर रहा है ? नहीं ये यह भारत के भविष्य के लिए कर रहा है, भावी पीढ़ियों के लिए कर रहा है, भारत बचाने केलिए कर रहा है क्योंकि जब भारत ही नहीं बचेगा तो कुछ भी करने का क्या फायदा ? ये लोगो को समझ में नहीं आ रहा। और अमित शाह ..........वह केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के साथ पूरी मजबूती से खड़ा हुआ है। देश के लिए वह काम कर रहा है , वह कार्य जो पिछले 70 सालों में कोई करने की हिम्मत नहीं जुटा सका । देश की अधिसंख्य जनता इन कार्यों की बड़ी शिद्दत और उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी और यही शक्ति है जो मोदी और अमित शाह के साथ है। हमें एकजुट होकर इनका इस्तीफा मांगने की जरूरत नहीं है बल्कि सामूहिक रूप से इनका उत्साहवर्धन करने की जरूरत है , हर उस कार्य के लिए जिससे देश मजबूत होता हो , तुष्टिकरण समाप्त होता हो, हिंदुत्व जो धर्म नहीं जीने की कला है , जीवन जीने की एक कला है, हिंदुस्तान की आत्मा है , की रक्षा हो सके। भारतवर्ष अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त कर सके।
याद रखिए आज देश में लगभग वैसी ही परिस्थितियां हैं जैसे विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के समय थी। जब हिंदुस्तान के राजा आपस में एकजुट नहीं थे , देश में एकजुटता नहीं थी और जिसका फायदा उठाकर आक्रांताओंं ने इस देश की आत्मा को छलनी कर दिया और देश हजारों साल तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा। आज .........आप की एक गलती , आपकी आने वाली पीढ़ियों को फिर से दासता की दहलीज के अंदर धकेल सकती है ।



Monday 6 January 2020

नहीं रहे त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी



उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में 18 जनवरी 1929 को जन्मे श्री त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी ने अपने कैरियर की शुरुआत आईएएस अधिकारी के रूप में की और अपने कैरियर में उन्होंने बहुत ख्याति अर्जित की । सेवानिवृत्ति के बाद श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार ने उन्हें भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक नियुक्त किया। इस पद पर वे 1984 से 1989 तक रहे । राजीव गांधी के प्रधान मंत्री के कार्यकाल में उन्होंने बोफोर्स खरीद में हुई गड़बड़ियों को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया जिसे बाद में बी पी सिंह ने लपक कर पूरे देश में बहुत जोर शोर से उठाया। बोफोर्स तोप के इस सनसनीखेज घोटाले के आरोपों के चलते श्री राजीव गांधी को 1989 में चुनाव में करारी हार के कारण अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। ये बोफोर्स ही था जिसने श्री बी पी सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया । यद्यपि इस घोटाले का अंतिम निष्कर्ष कुछ खास नहीं निकला ।

1991 में उन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया । बाद में वे राज्यसभा के सदस्य भी रहे। वर्ष 2002 में उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया। राज्यपाल के रूप में श्री चतुर्वेदी ने अपने कर्तव्यों का अच्छी तरह से निष्पादन किया। इस बीच कुछ समय के लिए वे केरल के कार्यवाहक राज्यपाल भी रहे। वर्तमान समय में वे भारतीय प्रशासनिक संस्थान के अध्यक्ष थे और डीएबी समूह की संस्थाओं के चांसलर थे। 

वैसे तो उनके सभी कार्यकाल कुछ न कुछ कारणों से हमेशा सुर्खियों में रहे, फिर भी कोई भी राजनीतिक व्यक्ति सीधे-सीधे कभी उन पर कोई आरोप नहीं लगा पाया। उनकी राज्यसभा का कार्यकाल कन्नौज और फर्रुखाबाद कि लोग बहुत अच्छी तरह से याद रखेंगे क्योंकि उस समय सांसदों को सांसद निधि से अपने क्षेत्र के विकास के लिए जो धन आवंटित होता था उसका उन्होंने पूरी पारदर्शिता और लोक उपयोगिता के साथ इस्तेमाल किया । कन्नौज से फर्रुखाबाद औरैया या किसी भी सड़क पर जब आप जाएंगे तो उनके कार्यकाल के बने हुए यात्री शेड, बस स्टॉप शेड और इस तरह के तमाम सारे कार्य आज भी जमीन पर दिखाई पड़ते हैं।

रविवार दिनांक 5 जनवरी को देर शाम नोएडा के कैलाश अस्पताल में उनका निधन हो गया। वे पिछले एक माह से बीमार चल रहे थे। कन्नौज और फर्रुखाबाद के लोग उन्हें कभी भुला नहीं पाएंगे और सभी देशवासी भी उनकी अमूल्य सेवाओं को हमेशा याद रखेंगे ।
 पूरे देश की विनम्र श्रद्धांजलि।
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- शिव मिश्रा 

Saturday 27 January 2018

दर्द है ..जो रह रह कर छलकता है .....

रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन का कार्य काल मोदी सरकार ने नहीं बढ़ाया था . कारण चाहे जो भी हों लेकिन उन्होंने इसे सहजता से नहीं लिया था और कुछ विशेष राजनैतिक पार्टियों ने ऐसा माहौल बना दिया था कि मानों देश बिना रघुराम राजन के नहीं चल सकता था और राजन सिर्फ देश सेवा के लिए ही विदेश से यहाँ आये थे और उनका कार्यकाल न बढ़ाना शायद मोदी जी का देश विरोधी काम था . स्वाभाविक है, दर्द तो होना ही था . अब जब भी मौका मिलता है वे वर्तमान सरकार की निंदा करना नहीं भूलते . अक्सर बुद्धजीवी तरह के लोग ऐसा करते हैं और उनकी यही आदत उन्हें सामान्य व्यक्ति से भी कम कर देती है . अतीत में हमने कई अमर्त्यसेन भी देखे हैं .


प्रधान मंत्री मोदी के बाद रघुराम राजन भी दावोस पहुंचे और उन्होने मोदी के भाषण सहित हिन्दुस्तान की अर्थ व्यवस्था की गहन समीक्षा कर उसके नकारात्मक पहलुओं को प्रस्तुत किया . यहाँ यह ध्यान रखना उचित है कि अब उनकी पहचान भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर की होती है न कि किसी अमेरिकन यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर की . अबकी बार उन्होंने अपने वक्तव्यों के राजनैतिक पुट भी दे दिया और मोदी ने जो लोकतान्त्रिक और विकाशशील हिंदुस्तान की झलक पेश की थी उस पर सवाल उठाये . उन्होंने मोदी के वक्तव्य " भारत में लोकतंत्र बहुरंगी आबादी और गतिशीलता देश का भाग्य तय कर रहें हैं और इसे विकाश के रस्ते पर ले जा रहे हैं ." की जमकर धाज्जिया उडाई . उन्होंने संदेह व्यक्त किया कि मोदी सरकार का काम काज लोकतान्त्रिक है ? उन्होंने कहा कि सरकार में सिर्फ कुछ लोग फैसले लेते हैं और नौकरशाहों को दरकिनार कर दिया गया है . समझा जा सकता है कि कांग्रेस और राजन का सूचना श्रोत एक ही है .


विश्व पटल पर हिन्दुस्तान की नकारात्मक छवि पेश करने से सभी को बचना चाहिए भले ही कितने ही राजनैतिक मतभेद क्यों न हों . 
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Friday 8 September 2017

डिज़ाइनर नेता और स्तरहीन पत्रकारिता

डिज़ाइनर नेता और स्तरहीन पत्रकारिता
गौरी लंकेश की हत्या के बाद अवार्ड वापसी गैंग एक बार फिर सक्रिय हो गयी और इस बार कई डिज़ाइनर नेता भी खुलकर मैदान में आ गए और उन्होंने आरएसएस और बेजीपी के आलावा प्रधानमंत्री मोदी को भी सीधे लपेट लिया . दूसरे दिन मुम्बई, दिल्ली और बंगलौर में कैंडिल मार्च हुआ और एक जैसी मोम् बत्तिया जैसे वे एक ही जगह बनी हों और फिल्म के किसी सीन की तरह अनुशासित निर्देशन में प्रदर्शन कारी रोते बिलखते देखने को मिले.                       गौरी जैसे पत्रकार की हत्या निंदनीय है और इसकी जाँच कर अपराधियों को सख्त से सख्त सजा दी जानी चाहिए. उ.प्र.  और बिहार में हाल ही में कई पत्रकारों की न्रशंस हत्या की गयी लेकिन अफ़सोस ! न कोई डिज़ाइनर नेता और न ही कोई मोमबत्ती धारी प्रदर्शन कारी कहीं दिखाई पड़ा . ये भेद क्यों ?


            गौरी लंकेश कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरामैय्या की बहुत नजदीकी मित्र थी और उनके राज्य में पोश इलाके में उनकी हत्या की गयी जो बेहद दुखदायी है. जब उन्हें धमकियाँ मिल रही थी और  उनकी जान को खतरा था, तो मुख्यमंत्री ने उन्हें सुरक्षा क्यों नहीं दी ? जिस दिन उनकी हत्या हुई वे मुख्य मंत्री से मिल कर आ रही थी. बताया जाता है कि वे एक गुप्त मिशन पर थी और उनके भाई ने बताया कि ये गुप्त मिशन था कई नक्सली नेताओं को आत्म समर्पण कराना और इसलिए वे कुछ नक्सलियों के निशाने पर थी . किन्तु सिद्धरामैय्या सहित सभी ने देश में बढ़ रही असहिष्णुता और प्रधान मंत्री मोदी को इस ह्त्या का इसका जिम्मेदार बताया . गौरी को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी  और पुलिस ने उन्हें सलामी दी.


ओम थानवी, रबीश कुमार और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने कपडे उतार कर नागिन डांस किया. टी आर पी  को लालाइत कुछ टी वी चैनलों  ने घंटो बहस की और एक छोटी सी साप्ताहिक मैगजीन “गौरी लंकेश” जिसकी कीमत रु. १५ और खरीदार पता नहीं कितने थे, के पत्रकार को राष्ट्रीय हीरो बना दिया. जाहिर है ये मग्जीन बिना पैसे के नहीं चल सकती, इसके श्रोत क्या है ? इसका स्तेमाल एक विशेष विचारधारा जो राष्ट्र भक्तों को कठघरे में खड़ा कर सके , के प्रचार और प्रसार के लिए किया जाता था. गौरी जो वामपंथी थी, को एक बीजेपी नेता के बारे में मिथ्या समाचार प्रकाशित करने के अपराध में अभी हाल ही  में ६ महीने के जेल की सजा सुनाई गयी थी  और वे जमानत पर थीं. वामपंथियों के पास अब सिवाय आडम्बर के और कुछ नहीं बचा है. एक सजायाफ्ता पत्रकार के प्रति एक राजनैतिक दल की इतनी हमदर्दी ... कुछ तो गड़बड़ है .


                    एस आई टी ने संकेत दिए हैं कि उनकी हत्या नक्सलियों ने की हो सकती है . 

लेकिन जो लोग हिट  एंड रन करके चले गए उनका क्या किया जाय ? 

 राजनीति और पत्रकारिता कितना  नीचे गिरेगी ? क्या कोई भविष्य वाणी कर सकता है ?  

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Thursday 7 September 2017

क्या मोदी सरकार द्वारा उनका कार्यकाल न बढ़ाये जाने का फैसला सही था ?

भारत में भटक रही है रघुराम राजन की आत्मा ......


क्या मोदी सरकार द्वारा उनका कार्यकाल न बढ़ाये जाने का फैसला सही था ?


यों तो रघुराम राजन को रिज़र्व बैंक का गवर्नर पद छोड़े हुए काफी समय हो गया है . पद छोड़ते हुए उन्होने अध्यापन को अपना पसंदीदा कार्य बताया था और इसीलिये जहाँ से आये थे वहीं चले गए थे . अक्सर किसी न किसी बहाने अनचाहे और आवंछित बयान देकर वे भारत में सुर्खिया बटोरते रहते हैं. मुद्दा चाहे नोट बंदी का हो या असहिष्णुता और सहन शीलता का, वे जब बोलते हैं तो उनका दर्द छलकता है . हाल ही में गौरी लंकेश हत्या पर बोलते हुए उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति को सहनशीलता से जोड़ दिया . कई बार उनकी टिप्पड़ी और पी चिदंबरम की टिप्पड़ी में कोइ अंतर नहीं होता है . 


उन्होंने अपने बयानों से सिद्ध कर दिया कि मोदी सर कार द्वारा उनका कार्यकाल न बढ़ाये जाने का फैसला शायद सही फैसला था.


Friday 25 August 2017

हरियाणा एक छोटा राज्य ....किन्तु ..... बड़े बड़े स्वयम्भू


हरियाणा वैसे तो एक छोटा राज्य है किन्तु स्वयंभू संत महात्माओं की भरमार रही है . .... जेल गए रामपाल और और अब जेल गए बाबा राम रहीम . लोगों की धर्मान्ध श्रद्धा और विश्वाश अपनी जगह है किन्तु कानून का राज्य कायम रखना और लोक कल्याण के काम करते रहना सरकार का प्राथमिक कर्तव्य है . इसमें किसी भी तरह का भेदभाव या वोट बैंक की राजनीति आड़े नहीं आनी चाहिए . 


कल की हिंसक घटनाये और हरियाणा सरकार की भूमिका दोनों कटघरें में हैं . किन्तु कुछ अन्य पहलुओं पर भी विचार किया जाना आवश्यक है .


-जब इस तरह की हिंसा की आशंका बाबा के अनुनायियों से थी तो क्या ये मुकदमा किसी अन्य राज्य में स्थानातरित नहीं किया जाना चाहिए था ?


-जब हरियाना पुलिस और सरकार दोनों भीड़ को नियंत्रित करने में विफल हो चुकी थी और लाखों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी और जब हिंसा जिसमे ३० लोगों की मृत्यु हो चुकी है , की आशंका थी, क्या न्याय निर्णय कुछ दिन के लिए टाला नहीं जा सकता था या रिजेर्व नहीं किया जा सकता था ? जैसे बहुत अन्य मुकदमों में किया जाता है .


-कल सिर्फ यह निर्णय दिया गया कि बाबा दोषी हैं बाकी निर्णय सोमवार को सुनाया जाएगा. क्या सारा निर्णय सोमवार तक रोका नहीं जा सकता था ? कौन सा आसमान टूट पड रहा था ?


- राम रहीम जैसे किसी स्वयम्भू बाबा को अधिकतम ७ वर्ष की सजा देने के लिए ३० लोगों की मौत .. क्या ये ३० निर्दोष लोगों को मृत्यु दंड देना नहीं हैं ?


-क्या जनता की सम्पत्तियां जो बर्बाद की गयी, रोका नहीं जा सकता था ?


-मनोहर लाल खट्टर के मुख्यमंत्री रहते , जो न तो राज्य के लोकप्रिय नेता हैं और न ही उनमे कोई प्रशानिक क्षमता है और जिनका पिछला ट्रेक रिकार्ड ( रामपाल और जाट आन्दोलन ) बेहद ख़राब है , केंद्र सरकार को अत्यधिक सतर्कता नहीं बरतनी चाहिए थी ?


- हरियाणा सरकार के एक मंत्री राम बिलास जो बाबा के बेहद करीब हैं और जो बार बार ये कहते रहें हैं कि सबकुछ शांति से निपट जाएगा, तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए कि वे ऐसा किस बिना पर कह रहे थे ? क्या प्रायोजित हिंसा बाबा को पुनर्स्थापित करने का प्रयास है ?


- बड़े पैमाने पर हुयी हिंसा में मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है , लाइव टेलीकास्ट की अनुमति किसने और क्यों दी ? रिपोर्टर क्रिकेट मैच की तरह कमेंट्री कर रहे थे और लगभग हर चैनल कह रहा था कि उसके रिपोर्टर पर हमला हुआ है उसकी वैन जला दी गयी है जबकि ऐसा था नहीं. सेंसेसन बनाने के लिए कई पत्रकार अपनी गाड़ियों में लेटे हुए सर पकड़ कर बुरी तरह चिल्ला रहे थे और प्रसारण किया जा रहा था कि उनपर धारदार हथियारों से हमला हुआ है. एक टीवी चैनेल का पत्रकार कह रहा था " यहाँ आसपास सरकारी कार्यालय है बहुत गाड़िया खडी हैं आशंका है कि भीड़ यहाँ आग लगाएगी" . और थोड़ी देर बाद वहां आग लगा दी गयी . 


- पूरे ड्रामा में पुलिस की भूमिका मूकदर्शक की रही ऐसा लग रहा था न कोइ लीडरशिप हैं और न ही कोइ सोच . 


- प्रधान मंत्री को चाहिए कि मुख्यमंत्री को तुरंत निकाल बाहर करे वे किसी काम के नहीं हैं . उन्हें, जहाँ से लाये गए थे उसी गोडाउन में जमा करा दे . जितनी देर होगी बीजेपी का उतना ही नुकसान होगा . बहुत संभव है दोबारा बीजेपी हरियाना में तो सत्ता में नहीं आयेगी . 


- केंद्र सरकार को चाहिए कि राज्यों में ऐसे मुख्यमंत्री बने जों कुशल प्रशासक हों, जिनके पास विजन हो और जो तेजी से विकास कार्य करे. वरना साइनिंग इंडिया जैसा हश्र बहुत दूर नहीं . 


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Sunday 6 August 2017

हिमालय में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी (TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY OF FLOWERS)

हिमालय में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी (TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY OF FLOWERS)

महाराष्ट्र की शैहाद्री पर्वत श्रखलाओं की कुछ चुनिन्दा पहाडियों में ट्रेकिंग का अभ्यास करने के बाद भारतीय स्टेट बैंक वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र मुंबई की हमारी ४० सदस्यीय टीम श्री ऍम महापात्रा उप प्रबंध निदेशक एवं मुख्य सूचना अधिकारी के नेर्तत्व में हिमालय में ट्रेकिंग के लिए फूलों की घाटी उत्तराखंड के लिए रवाना हुई.

पहला दिन – मुम्बई से रुद्रप्रयाग
मुम्बई से देहरादून (१३८० किमी) पहुँचने के बाद एअरपोर्ट से सीधे रुद्रप्रयाग  के लिए गाडियों निकल पड़े . ये दूरी लगभग 160 किमी है जो ५-६ घंटे पूरी होती है. पूरा रास्ता हरियाली से ओतप्रोत है और पहाड़ो और घाटियों के द्रश्य बेहद मनोरम हैं. अनगिनत झरने मन मोह लेते हैं.  रूद्र प्रयाग  में रात्रि विश्राम हेतु रुकते हैं .

दूसरा दिन – रुद्रप्रयाग से घांघरिया
रुद्रप्रयाग  से सीधे जोशी मठ के लिए रवाना हो गए . रास्ते में चाय पान के बाद गोविन्द्घाट और फिर वहा से शुरू हुई ट्रैकिंग. जो यात्रा का आख़िरी पड़ाव जिसे कार से पूरा किया जा सकता है. गोविन्दघाट से  ४ किमी ऊपर एक गाव है जहाँ से ९-१० किमी की चढ़ाई के बाद घाघरिया पहुँचना था . ये चढ़ाई लगातार चलती हुयी ३०४९ मीटर की ऊंचाई पर स्थिति घाघरिया पहुंचती है. हेमकुंड जाने वाले श्रद्धालु भी यहाँ पहुँच कर रुकते हैं. देहरादून से शुरू हुई  ये यात्रा निरंतर मनोरम पहाडियों और घाटियों से होकर गुजरती है और बहुत ही चित्ताकर्षक दृश्यों और प्रकृति का सुंदर चित्रण करती हैं. ये देव भूमि है और इसे ऐसा चित्ताकर्षक होना ही चाहिए. कई जगह भूस्खलन प्रभावित, बहुत खतरनाक रास्तो से गुजरना पड़ा शायद इनमे से बहुत से  मानव निर्मित है और प्रकृति  का अंधाधुन्ध दोहन और दुरुपयोग रेखांकित करते हैं. हमारी टीम ने अनेक जगहों पर रूक कर फोटोग्राफी की. वैसे तो दुनिया में बहुत ऊचे ऊचे पर्वत है लेकिन हिमालय जैसा महान और देव तुल्य कोई भी नहीं कहीं भी नहीं .

घाघरिया जाने के लिए ९ किमी लम्बा  ट्रेकिंग का रास्ता बहुत मुश्किल नहीं पर  बहुत ज्यादा और लगातार चढ़ाई वाला है जो थकान देता  है और लगातार ऑक्सीजन के कम होते लेवल से जल्दी साँस फूलने लगती है . रास्ते के द्रश्य बहुत अच्छे और फोटोजेनिक  है जिनसे थकान दूर हो जाती हैं .

तीसरा दिन – घांघरिया से फूलों की घाटी और वापस घांघरिया
घघरिया से सुबह ६ बजे हमलोग फूलों की घाटी के लिए चल पड़े. बेहद खतरनाक चढ़ाई और छोटे बड़े उखड़े पड़े पत्थरों से मिल कर बना  रास्ता ४ किमी लम्बा है. इस पर सामान्य रूप से चलना दूभर है. हर कदम बहुत सोच समझ कर बढ़ाना होता है और हर कदम पर  ध्यान केन्द्रित करना होता है  अन्यथा जरा सी असावधानी से सैकड़ो / हजारो फीट नीचे गहराई में जा सकते है. पिछली आपदा के समय जो रास्ता था वह तहस नहस हो चुका था इसलिए एक नया रास्ता निकाला  गया है जिसमे पत्थर बहुत नुकीले और ठीक से जमे नहीं है और बहुत सीधी चढ़ाई है कई जगह ७० से ८० डिग्री तक. इसलिए चलना बहुत थकान देता है. 

अनंतोगत्वा हम फूलों की घाटी में सफलता पूर्वक पहुँच गए. लगभग १०००० फीट ऊंचाई पर हिमालय की गोद में ८७-८८ वर्ग किमी मे फ़ैली इस घाटी को १९८२ में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया है. यूनस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित कर रखा है. वास्तव में यहाँ आकर  दिव्यता का अहसास होता है ये देव भूमि का नंदन कानन है. चारो ओर सुंदर फूल, पत्ते, पर्वत की बर्फ से सजी चोटियाँ, निर्झर गिरते झरने, पास से गुजरते बादल और मलायागिरी से  मंद मंद आती सुगन्धित हवाये . इतना प्राकृतिक सौंदर्य कि पलक झपकाने की सुधि  बुध नहीं, चित्त शांत और मन स्थिर हो जाता है . शायद इसीलिये तपस्या के लिए ऋषि मुनि ऐसी ही जगहों का चयन करते रहें होंगे. इस घाटी में हम केवल ३ किमी लम्बी और लगभग १/२ किमी चौड़ी घाटी में घूम सकते हैं .   

ऐसा माना जाता  है हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने  इसी घाटी में आये  थे। चमौली जिले में एक ऐसा भी गाँव बताया जाता है जहाँ के लोग आज भी हनुमान जी के बारे में बात करना या उनकी फोटो देखना तक पसंद नहीं करते. क्योंकि उनके अनुसार हनुमान जी की संजीवनी  के चक्कर में अन्य जडी बूटियों का  बहुत नुकसान हुआ. स्थानीय निवासी इसे परियों और किन्नरों  का  देश समझने के कारण यहाँ आने से कतराते थे. रामायण और अन्य ग्रंथो में नंदन कानन के रूप में इस घाटी का उल्लेख किया गया है . इस घाटी का पता सबसे पहले ब्रिटिश  पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ  ने लगाया था इसकी खूबसूरती से प्रभावित होकर स्मिथ ने 1937 में आकर  इस घाटी में काम किया और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब लिखी. फूलों की ये  घाटी  चारो ओर बर्फ से ढके  पर्वतों से घिरी है. फूलों की 500 से भी अधिक प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं जिन्हें विभिन्न उपचारों में औषधियों के रूप में प्रयोग किया जाता है. अनगिनत जडी बूटियों का भंडार यहाँ है . पूरे विश्व में इस तरह सुंदर और उपयोगी की कोई अन्य जगह नहीं है यहाँ तक कि स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया सहित  सभी   देशों की प्राक्रतिक सुन्दरता इस के आगे कुछ भी नहीं है . टीम में स्टेट बैंक के बरिष्ठ अधिकारियो, जो विश्व के कई देशों में कम कर चुके और अनेक देशों की यात्रा कर चुके है, का स्पष्ट मानना है कि विश्व में इससे सुंदर कोई जगह नहीं है. और यहाँ आना ..... वास्तव में बहुत ही रोमांचक अनुभव है. अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आपको काले हिमालयन भालू, कस्तूरी हिरण और तितलियों व् पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां भी देखने को मिल सकती हैं . हमने तितलियाँ  और  पक्षी तो देखे लेकिन भालू, तेंदुए और कस्तूरी हिरन देखने को नहीं मिले. भोजपत्र के वृक्ष रास्ते में आपको मिलेंगे जिन का  प्राचीन समय में लिखने हेतु प्रयोग होता था.  
नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है। जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन सहित बहुत से फूल खिलते हैं. हैं। हमारी गाइड ने बताया कि यहाँ पाये जाने वाले फूलों में एनीमोनजर्मेनियममार्शगेंदाप्रिभुलापोटेन्टिलाजिउमतारकलिलियमहिमालयी नीला पोस्तबछनागडेलफिनियमरानुनकुलसकोरिडालिसइन्डुलासौसुरियाकम्पानुलापेडिक्युलरिसमोरिनाइम्पेटिनसबिस्टोरटालिगुलारियाअनाफलिससैक्सिफागालोबिलियाथर्मोपसिसट्रौलियसएक्युलेगियाकोडोनोपसिसडैक्टाइलोरहिज्मसाइप्रिपेडियमस्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान आदि  प्रमुख हैं। प्रत्येक मौसम में यहाँ अलग तरह के फूल खिलते है पर सबसे अच्छा मौसम जुलाई से सितम्बर का होता है.
हम तय समय के अनुसार फूलों की घाटी से वापस चल दिए और घांघरिया आ गए. शाम को इको डेवलपमेंट कमिटी भ्युन्दर द्वारा घाटी में किये जा रहे स्वच्छता सफाई और जागरूकता अभियान और  सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर किये गए  प्रस्तुतीकरण देखे. ये गैरसरकारी संगठन घाटी के पर्यावरण संरक्षण में बहुत अच्छा कार्य कर रही है .
चौथा दिन – घांघरिया से औली गाँव
चौथे दिन सुबह हमलोग घांघरिया से वापस  गोविन्दघाट के लिए चल पड़े . लगभग  तीन  घंटे की ट्रेकिंग के बाद हमलोग वापस गोविन्दघाट पहुँच गए. वहां हमारी गाड़िया खडी थी. गोविन्द् घाट  से हमलोग  जोशी मठ पहुंचे और भगवान बद्री विशाल के दशनो के लिए पहुँच गए . मंदिर के कुंड के गर्म पानी में नहाने से सारी थकान दूर हो गयी. दर्शन और पूजन के बाद हमलोग सीमा के अंतिम गाँव माना  पहुंचे जहाँ जहाँ गणेश गुफा , व्यास पीठ के आलावा भीम पुल स्थिति है जो बेहद आकर्षक है . कहते है जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे रास्ते में भागीरथ  नदी थी जिसे पार करने के लिए भीम ने एक शिला नदी के ऊपर डाल दी जिसे भीम पुल कहते हैं . यहाँ मोहक झरना है और बेहतरीन दृश्य. और भारत की सीमा  की आखिरी चाय की दुकान . वहां से हमलोग औली गाँव में एक रिसोर्ट में ठहरने के लिए चल पड़े.  औली से नंदा देवी चोटी के आलावा चारो तरफ पर्वत श्रंखलाये दिखाई देती है. प्रकति की बहुत ही  मनमोहक छटाये बिखरी है चारोतरफ.
पांचवा दिन – धुली गाँव से ऋषिकेश
औली में रात्रि विश्राम के बाद सुबह हमलोग ऋषिकेश के लिए चल पड़े और उद्देश्य ये कि परमार्थ आश्रम की आरती देख सकें जो प्राय: ६:३० बजे होती है. पूरे रास्ते मनमोहक घाटियों और वादियों का आनन्द उठाते हुए और कई जगह भूस्खलन और उसके कारण लगे जाम के कारणों को समझते हुए आगे बढ़ते रहे. मै कई बार पर्वतो की यात्रा पर गया हूँ और हर बार कुछ नया पाता हूँ. रास्तों पर चलते हुए पिछली यात्रा में मैंने एक कविता लिखी थी वह याद आ गयी 

रिश्ते प्यार के
और रस्ते पहाड़ के ,
आसान तो बिल्कुल नही होते,
कभी धूपकभी छाव ,
कभी आंधीकभी तूफान,
तो कभी साफ आसमान नहीं होते ।  
थोड़ी सी बेचैनी से
सैलाब उमड़ पड़ते है अक्सर,
आंखे भी निचोड़ी जाय,
तो कभी  आँसू नहीं होते ,  
(पूरी कविता पढने के लिए नीचे दिया लिक क्लिक करें) 

https://shivemishra1.blogspot.in/2013/10/blog-post_2895.html

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छठवां दिन – ऋषकेश में योग और वापसी
अभियान के छठवें दिन हमारा दिन ऋषिकेश के एक प्रतिष्ठित योगाश्रम में योग शिक्षा से शुरू हुआ . हमने ध्यान,योग, और शारीरिक और मानसिक स्वस्थ रहने के विभिन्न  आयाम सीखे. गंगा स्नान के बाद हम लोग मुंबई आने के लिए एअरपोर्ट चल दिए.
कुछ फोटो -----





































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